9/03/2016

मन की बात :बेमन की बात !( व्यंग्य लेख )

आप अगर अपना मुंह सिये रहें तो लोग मौनी बाबा न कहने लगे जाते हैं । आज उन्होंने फिर मन की बात की और बड़े बड़ों ने बेमन से सुनी । ऐसा नही कि वे मन की बात मन में नहीं रख सकते । लेकिन रखकर करें क्या । यह मन ही तो है जो मन में कुछ रखना नहीं चाहता ।अरे ! देश विदेश घूमना पड़ता है।बेचारी कुर्सी तक तरस जाती है।हफ्तों नहीं देख पाती। अब दुनिया भर मेँ भारी मन को लिए घूमने का तुक भी क्या है ?

वे आज बहुत देर तक मन की बात करते रहे ।प्रतिपक्ष कॊ मन भर उन्होंने धुना । सरकारी मन था ।  मनकी बात कितनी सरकारी और कितनी असरकारी थी प्रतिपक्ष इसी का अंदाज़ा लगाता रहा। सारी बातें मन की पाटी पर थी इसलिए  सरकारी कानों ने भी ज्यादा तरजीह दी।

विश्व के इतिहास में  ये माना जा सकता है या जायेगा और स्वर्ण अक्षरों में इनका नाम दर्ज हो गया ये   पहले ऐसे पति हैं जो मन की बात बिना किसी डर के कर लेते हैं । वैसे कहने की बात है पति तो राष्ट्रपति भी हैं । घर मे बोल कर दिखाये टी वी ,रेडियो मे इन्हे कौन चुप करवाये । भई पति ,पति मे भी फर्क होता है और साथ के साथ स्थिति और वातारण का भी। मौके का संज्ञान लिये बिना मन की बात कर दे तो मामला खिलता चमन से उजडा चमन होते देर नही लगती ।

वैसे इनकी मन की बात के बाद काफ़ी लोगों में मन की बात करने का चलन बन गया है आजकल वायरल का ज़माना है चाहे मच्छर वाला हो या फ़िर मन की बात का वायरल । मन की बात मात्र अभिव्यक्ति नही ,अभिव्यक्ति का परमास्वादन है । अगर ऐसा न होता तो प्रेमी , प्रेमिका कॊ प्रेम निवेदन कर परमसुख का अनुभव ना कर पाता । लेकिन मन की बात अभी भी शक्ति रूपी लोगों तक ही सीमित है कमजोर व  आम जन इंसान न मन की सुनता न दिल की कहता...वह जो करता है सिर्फ़ जीवन यापन कर पेट  पालने हेतु करता है ।

मन की अभिव्यक्ति सुन भान हुआ द्वंदात्मकता जीवन के नियमों की प्रतिबद्धता है । एक मन की बात करते हैं दूजे मन की बात की काट करते हैं । एक रस से लबरेज़ चुक्कँदर बनते तो विपक्षी उनको काट - पीट चीनी बना घोल पी जाते । सुविधाओं से लैस मन की बात कमाल लगती है । सड़कों पर यही मन की बात बवाल लगती है । कभी- कभार मन बातें फोन पर भी जबर्दस्ती सुनाई जाती हैं । हेलो होते ही बोला जाता है फोन न काटे मतलब...मन हो तो ठीक बेमन हो तो भी सुनो ।

और तो  और उनके मन की बात के  इस विचार धारा कॊ फिल्मी जगत बहुत पहले प्रयोग में ला चुका था उसका परिणाम है ऐसा संगीत..."मै चाहे ये करूँ ,मै चाहे वो करू ,मेरी मर्ज़ी" । मन मर्ज़ी की बात आती है तो अमेरिका का नाम गिनती मे शुमार होना लाजिमी है । कोई उसकी बात सुनें न सुने वह सुना छोड़ता जैसे हमारे यहाँ आजकल ये जबरदस्ती सुनाते हैं । वैसे मन की बात करने मे तो पाकिस्तान भी कम नही बल्कि हमारे उनसे दस हाँथ आगे है ।

वह अब अपनी मन की बात कॊ "लोक हित चिंतन" बतलाते हैं पर राजनीति मे समष्टि और व्यष्टि विचार व्याधि जोरों पर है इससे उबर पाना कुरकुरे के टेढे पन जैसे है , टेढ़ा है पर मेरा है। बदकिस्मती से ये सारे  मनबतिया हमारे राजनीतिक हीरो हैं । ज़बरदस्ती सुनायी जाने वाली मन की बात विपक्षियो के साथ -साथ जनता के नेह की पीर न साबित हो ।

जिस देश मे आज़ादी के इतने बरस बीतने के बाद भी अधिकाँश छाती आत्म अधीरा हो वहाँ मन के बात की फैन्टेसी...फैन्टेसी मात्र ही है । कुवँर नारायण की ये पंक्तियाँ खूब भालो लगती हैं.."".कर्मयोगी आदमी बंजर नहीँ / मत इंसान कॊ शिशु मेघों से घेरो /उसे पूरी तरह तम से निकलने दो / आँक लेगा वह पनप कर / विश्व का विस्तार अपनी अस्मिता में/ सिर्फ़ उसकी बुद्धि कॊ हर दास्ता से मुक्त रहने दो ।।

No comments:

Post a Comment