5/26/2016

प्यार था या कुछ और !!( कहानी )

उर्वशी को मालूम ना था उसको उसके प्यार के लिये क्या कीमत चुकानी होगी.....अब यह भी सोचने को मजबूर है कि उसका प्यार...प्यार था भी या नही !!
वरना कोई ऐसे अकेले उसे यूँ छोड़ कर ना जाता ।
उर्वशी को अपने पुराने दिन बरबस याद आ रहें हैं वो मयंक से किस कदर सम्वेदनाओ से बँधी प्यार मे डूबी थी...हर पल उसके ही ख्यालों मे डूबती - उतराती... मन ही मन उसको अपना सब कुछ मान बैठी थी ।
   
                 एक दूसरे को दूर से निहारने मे भी इतना  सुकून मिल जाता कि सारे अरमां पूरे हो जाते ।दिन बीते...महीने और फ़िर साल.....कुछ सालो तक सिलसिला यूँ ही चलता रहा....!

अब उर्वशी कि शादी होने वाली पर मयंक से नही किसी और से। उर्वशी ने लाख कोशिश कि शादी मयंक से हो पर  हो न पायी। फ़िर क्या था एक दिन उर्वशी की शादी किसी नीरज से हो जाती है ।

शादी के कुछ दिन तक उर्वशी और मयंक दोनो लगभग एक दूसरे को भूल चुके थे....उर्वशी का कुछ दिनों पहले मायके आना हुआ मयंक भी संयोग से शहर से आया हुआ था । दोनो का फ़िर र्क बार आमना -सामना हुआ...दोनो का सोया हुआ प्यार पुनः हिलोरें मार उठा । उर्वशी वापस ससुराल जा चुकी है पर जाते -जाते मयंक को अपनी ससुराल का पता दे जाती है ।

मयंक अब मौके तलाश कर जब भी उर्वशी का पति नीरज घर मे न होता...वह अपने प्यार उर्वशी से  मिलता रहता। मयंक जब भी जाता महँगे से महँगे तोहफ़े उर्वशी को दें कर आता,इन्ही महँगे तोहफो मे से एक तोहफा और लेटर नीरज के हाँथ लग गया ।नीरज बहूत ही समझदार और सूझबूझ वाला व्यक्ति था उसने उर्वशी को बैठा कर प्यार से समझाया कि देखो जो हो चुका उसे भूल जाओ आगे हम डोनर को ही साथ रहना और चलना पड़ेगा....उर्वशी ने वक़्त की नजाकत देखी और नीरज के सामने अपनी गलती स्वीकार कर मयंक से डोर रहने की हाँ कर दी ।

वक़्त बीता बात आयी -गयी हो गया पर उर्वशी उर मयंक का प्यार परवान चढ़ता रहा । इस बीच उर्वशी के पाँव भारी हो गये नीरज और घर वाले काफ़ी खुशी थे । पर तकदीर को कुछ और ही मंजूर था मयंक हमेशा उर्वशी को बोलता था तो नीरज को तलाक दे दे या बिना किसी को बताये उसके साथ दूर कही भाग चले ...एक दिन नीरज ने उर्वशी और मयंक को साथ - साथ देखा लिया....नीरज ये सब देख आगबबूला हो गया उसकी सूझबूझ भी उसको सम्भाल ना पायी...उसने खुद को गुस्से मे आग लगा ली।

घर मोहल्ला सभी लोग आवाज़ सुन नीरज को जैसे -तैसे बचा कर अस्पताल पहुँचाया..पर डॉक्टर्स का कहना की नीरज बहुत ज्यादा जल चुका है उसे बचा पाना बेहद ही मुश्किल है ,खैर इलाज जाड़ी है नीरज के विकलांग बाप और बूढी माँ का रो -रो बुरा हाल है।लाख कोशिशों के बाबजूद अपने माँ -बाप की इकलौते संतान नीरज का मौत हो जाती है ।

नीरज के तेरहवीं क्रिया क्रम के बाद उर्वशी का मायके आना होता है ।लोग दबी जुबान मे तरह -तरह की बाते बना रहें हैं । उर्वशी को प्रसव पीडा का अहसास होता है घर वाले अस्पताल ले कर जाते है उर्वशी को सुंदर सी बेटी हुइ है पर वो पैदा होते ही बिन बाप की है..घर वाले व उर्वशी सदमें मे हैं खुशी मनाये भी तो कैसे...!!

1 comment:

  1. आपकी प्रत्येक कहानी में परिस्थिति से हारकर मरने की ही घटना क्यों होती है. सकारात्मक सोच होना चाहिए.

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