5/01/2016

बकलोली ( व्यंग्य कविता)

केहकर टाठी केहकर दार
किसान कहि-कहि
मोह  रही  सरकार
जनता जाये भाड़ मा
कौनो  देखाय न खेवनहार
दूध जरे छाछौ फूक कै पीबे
बिन टीवी,लपटाप वोट न देबे
अइहौ जौ परचार मा
देखब तुम्हरी बकलोली
देखाय देबे हमहु
तुमका आपन ठिठोली
सूखा कहि-कहि
 बटोरेव धन मारम मार
अब मिल बांट कै खांय मा
अंधेर मचाएव रहे हौ रार  ॥शशि पाण्डेय 
 

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना शशि जी बधाई

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  2. बहुत सुन्दर रचना शशि जी बधाई

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना शशि जी

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  4. बहुत सुन्दर रचना बधाई जी

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना बधाई शशि जी

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